आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
रूह में रौशनी लहजे में चमक पैदा हो
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मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
दुनिया
हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
तुम और किसी के हो तो हम और किसी के