गोधूलि Poetry

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

ज़िया जालंधरी

शाम का पहला तारा (2)

ज़ेहरा निगाह

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर

ज़काउद्दीन शायाँ

इश्क़ की मंज़िल में अब तक रस्म मर जाने की है

ज़ेब बरैलवी

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

जो हौसला हो तो हल्की है दोपहर की धूप

ज़हीर सिद्दीक़ी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा

ज़फ़र गौरी

तिरे क़रीब रहूँ या कि मैं सफ़र में रहूँ

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

सुर्ख़ दामन में शफ़क़ के कोई तारा तो नहीं

वामिक़ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

वामिक़ जौनपुरी

ज़िंदगी दस्त-ए-तह-ए-संग रही है बरसों

वकील अख़्तर

गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ

वाहिद प्रेमी

मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सब का है

तिलक राज पारस

वो रौशनी जो शफ़क़ का लिबास छोड़ गई

तौक़ीर अब्बास

लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है

तनवीर अहमद अल्वी

लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है

तनवीर अहमद अल्वी

फ़िशार-ए-हुस्न से आग़ोश-ए-तंग महके है

तनवीर अहमद अल्वी

अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं

तनवीर अहमद अल्वी

वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रिब का

सिराज औरंगाबादी

यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम

सिराज औरंगाबादी

सुने रातों कूँ गर जंगल में मेरे ग़म की वावैला

सिराज औरंगाबादी

अश्क-ए-ख़ूनीं है शफ़क़ आज मिरी आँखों में

सिराज औरंगाबादी

ज़बान-ए-ख़ल्क़ को चुप आस्तीं को तर पा कर

सिद्दीक़ मुजीबी

शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

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