गोधूलि Poetry (page 3)

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

सलीम शाहिद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा

सलाम संदेलवी

उधड़े हुए मल्बूस का परचम सा गया है

सज्जाद बाबर

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

सर-ज़मीन-ए-यास

साहिर लुधियानवी

मैं नहीं तो क्या

साहिर लुधियानवी

जागीर

साहिर लुधियानवी

पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए

साग़र सिद्दीक़ी

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

जब भी पढ़ा है शाम का चेहरा वरक़ वरक़

साबिर ज़ाहिद

'बद्र' जब आगही से मिलता है

साबिर बद्र जाफ़री

बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता

रियाज़ लतीफ़

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

पैहम मौज-ए-इमकानी में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

क़स्र-ए-वीराँ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

बाहम सुलूक-ए-ख़ास का इक सिलसिला भी है

राज नारायण राज़

अशआर रंग रूप से महरूम क्या हुए

राज नारायण राज़

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को

इक़बाल साजिद

अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की

इक़बाल साजिद

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