सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
Allama Iqbal
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(7364) Peoples Rate This
गड़े मर्दों ने अक्सर ज़िंदा लोगों की क़यादत की
मिले मुझे भी अगर कोई शाम फ़ुर्सत की
ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला
रोए हुए भी उन को कई साल हो गए
वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था
अजब सदा ये नुमाइश में कल सुनाई दी
साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा
बढ़ गया है इस क़दर अब सुर्ख़-रू होने का शौक़
वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में
जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर
पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का
मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा