वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था
इशारा करता था जुम्बिश न थी इशारे में
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1532) Peoples Rate This
वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में
हर कसी को कब भला यूँ मुस्तरद करता हूँ मैं
जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर
कट गया जिस्म मगर साए तो महफ़ूज़ रहे
मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में
प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
जैसे हर चेहरे की आँखें सर के पीछे आ लगीं
इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई
दरवेश नज़र आता था हर हाल में लेकिन
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
पता कैसे चले दुनिया को क़स्र-ए-दिल के जलने का