कट गया जिस्म मगर साए तो महफ़ूज़ रहे
मेरा शीराज़ा बिखर कर भी मिसाली निकला
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ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
रोए हुए भी उन को कई साल हो गए
वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी
'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर
मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ
सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को
दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई
हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे