ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
अपने बच्चे बेचना 'इक़बाल-साजिद' छोड़ दे
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ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक
अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की
सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई
वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था
मारा किसी ने संग तो ठोकर लगी मुझे
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
मुसलसल जागने के बाद ख़्वाहिश रूठ जाती है
बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
ग़ार से संग हटाया तो वो ख़ाली निकला
प्यार करने भी न पाया था कि रुस्वाई मिली
मुझे नहीं है कोई वहम अपने बारे में
मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा