मारा किसी ने संग तो ठोकर लगी मुझे
देखा तो आसमाँ था ज़मीं पर पड़ा हुआ
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सूरज हूँ चमकने का भी हक़ चाहिए मुझ को
रोए हुए भी उन को कई साल हो गए
ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा
मुसलसल जागने के बाद ख़्वाहिश रूठ जाती है
मिरे ही हर्फ़ दिखाते थे मेरी शक्ल मुझे
मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ
बढ़ गया है इस क़दर अब सुर्ख़-रू होने का शौक़
ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक
फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो
मैं आईना बनूँगा तू पत्थर उठाएगा
बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे