रोए हुए भी उन को कई साल हो गए
आँखों में आँसुओं की नुमाइश नहीं हुई
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मोम की सीढ़ी पे चढ़ कर छू रहे थे आफ़्ताब
प्यार करने भी न पाया था कि रुस्वाई मिली
दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया
ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी
बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी
वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था
उस आइने में देखना हैरत भी आएगी
दरवेश नज़र आता था हर हाल में लेकिन
मिले मुझे भी अगर कोई शाम फ़ुर्सत की