लंबा Poetry

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

मैं बच गई माँ

ज़ेहरा निगाह

सामाँ तो बेहद है दिल में

अनवर शऊर

देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे

संजय मिश्रा शौक़

रौशनी का ग़ुलाम

एहतिशाम अख्तर

कचरे का ढेर

बुशरा सईद

छोटे क़द के लोग

एहतिशाम अख्तर

मनकूहा

ज़ुबैर रिज़वी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

वो हो कैसा ही दुबला तार बिस्तर हो नहीं सकता

ज़रीफ़ लखनवी

ग़ुंचा-दहन वही है कि गूँगा कहें जिसे

ज़रीफ़ लखनवी

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

जब भी झुक कर मिलता हूँ मैं लोगों से

ज़फ़र ताबिश

बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं

ज़फ़र ताबिश

हरे पत्तो सुनहरी धूप की क़ुर्बत में ख़ुश रहना

ज़फ़र सहबाई

फूला-फला शजर तो समर पर भी आएगा

ज़फ़र कलीम

मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता

यूसुफ़ तक़ी

बौना था वो ज़रूर मगर इस के बावजूद

युसूफ़ जमाल

सोचा कि वा हो सब्ज़ दरीचा जो बंद था

युसूफ़ जमाल

तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ

यूसुफ़ आज़मी

ज़ख़्म मेरे दिल पे इक ऐसा लगा

यासीन अफ़ज़ाल

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

हम ने उस शोख़ की रानाई क़ामत देखी

वसीम ख़ैराबादी

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल ऐ यार देखिए क्या हो

वली उज़लत

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