लंबा Poetry (page 7)

रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने

हमीद अलमास

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

वहशी थे बू-ए-गुल की तरह इस जहाँ में हम

हैदर अली आतिश

ताज़ा हो दिमाग़ अपना तमन्ना है तो ये है

हैदर अली आतिश

पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है

हैदर अली आतिश

पयम्बर मैं नहीं आशिक़ हूँ जानी

हैदर अली आतिश

जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले

हैदर अली आतिश

आश्ना गोश से उस गुल के सुख़न है किस का

हैदर अली आतिश

ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है

हफ़ीज़ बनारसी

रात का नाम सवेरा ही सही

हफ़ीज़ बनारसी

है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त

हबीब मूसवी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

शाख़ें

गुलज़ार

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शादाँ न हो गर मुझ पे कड़ा वक़्त पड़ा है

गोपाल मित्तल

झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर

ग़ालिब

जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम

ग़ालिब

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

जुदाई

फ़िराक़ गोरखपुरी

इन आँखों में बिन बोले भी मादर-ज़ाद तक़ाज़ा है

फ़ज़्ल ताबिश

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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