लंबा Poetry (page 11)

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

अब्दुल वहाब यकरू

मुझ सीं और दिलरुबा सीं है अन-बन

अब्दुल वहाब यकरू

मस्त अँखियाँ का देख दुम्बाला

अब्दुल वहाब यकरू

लोग हर-चंद पंद करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

अब्दुल वहाब यकरू

ज़ात उस की कोई अजब शय है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिज़ाज-ए-सहल-तलब अपना रुख़्सतें माँगे

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

ऐसे तो कोई तर्क सुकूनत नहीं करता

अब्बास ताबिश

सारे आलम में तेरी ख़ुशबू है

आसी ग़ाज़ीपुरी

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

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