लंबा Poetry (page 4)

शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जिस कूँ पी का ख़याल होता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा

शहराम सर्मदी

हम-सफ़र ज़ीस्त का सूरज को बनाए रक्खा

शहनाज़ नूर

वही सफ़्फ़ाक हवाओं का सदफ़ बनते हैं

शाहिद मीर

उधर अब्र ले चश्म-ए-नम को चला

शाह नसीर

तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या

शाह नसीर

न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं

शाह नसीर

इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया

शाह नसीर

दिखा दो गर माँग अपनी शब को तो हश्र बरपा हो कहकशाँ पर

शाह नसीर

सुब्हा से है न काम न ज़ुन्नार से ग़रज़

शाह आसिम

देख कर उस को मुझे धचका लगा

शफ़ीक़ सलीमी

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना

शाद शाद नूही

हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में

शाद लखनवी

दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़

शबाब ललित

औरत

शाद आरफ़ी

तेरी गली में इक दीवाना अक्सर आया करता था

सय्यद नसीर शाह

मेरी तुझ से क्या टक्कर है

सौरभ शेखर

तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत

मोहम्मद रफ़ी सौदा

मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे

सदार आसिफ़

ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं

सदार आसिफ़

अमीर-ए-शहर के आँगन में जब उजाले हुए

संजय मिश्रा शौक़

क़ाइल करूँ किस बात से मैं तुझ को सितमगर

सलीम शाहिद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे

सलीम कौसर

आफ़ाक़

सलीम अहमद

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