गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ
ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिस में तू न हो
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आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने
ग़म भी है कैफ़ भी है सोज़ भी है साज़ भी है
हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन का
किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
कोई हंगामा-ए-हयात नहीं
दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
शख़्सिय्यत-ए-फ़नकार मुअ'म्मा नहीं 'वाहिद'
क्यूँ शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-साक़ी है लबों पर
राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश
कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'
उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ