कोई हंगामा-ए-हयात नहीं
रात ख़ामोश है सहर ख़ामोश
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आशियाँ जलने पे बुनियाद नई पड़ती है
जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है
कोई गर्दिश हो कोई ग़म हो कोई मुश्किल हो
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
शख़्सिय्यत-ए-फ़नकार मुअ'म्मा नहीं 'वाहिद'
है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव
शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
ग़म भी है कैफ़ भी है सोज़ भी है साज़ भी है
कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'
बा'द तकलीफ़ के राहत है यक़ीनी 'वाहिद'