हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
हक़ बात सर-ए-दार कहो सोचते क्या हो
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(812) Peoples Rate This
किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
वो और हैं किनारों पे पाते हैं जो सुकूँ
आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने
हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
कोई गर्दिश हो कोई ग़म हो कोई मुश्किल हो
है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव
कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'