हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
हुजूम-ए-दर्द से पाया है हौसला मैं ने
Habib Jalib
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राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश
अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह
बा'द तकलीफ़ के राहत है यक़ीनी 'वाहिद'
शब-ए-फ़िराक़ कई बार गोशा-ए-दिल से
ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत
किस शान किस वक़ार से किस बाँकपन से हम
न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
क्यूँ शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-साक़ी है लबों पर
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ