राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश
कैसे गुज़रेगा ये सफ़र ख़ामोश
कोई हंगामा-ए-हयात नहीं
रात ख़ामोश है सहर ख़ामोश
ज़िंदगी को कहाँ तलाश करें
कूचा कूचा नगर नगर ख़ामोश
बज़्म में वो ख़मोश क्या होंगे
हो सके जो न दार पर ख़ामोश
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है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव
दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
हुजूम-ए-ग़म से मिली है हयात-ए-नौ मुझ को
किसी को बे-सबब शोहरत नहीं मिलती है ऐ 'वाहिद'
एक मुद्दत से इसी उलझन में हूँ
उफ़ गर्दिश-ए-हयात तिरी फ़ित्ना-साज़ियाँ
इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर
राह-ए-तलब की लाख मसाफ़त गिराँ सही
न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
ग़म भी है कैफ़ भी है सोज़ भी है साज़ भी है
मैं औरों को क्या परखूँ आइना-ए-आलम में
शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह