दीवार Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

तेज़ है मेरा क़लम तलवार से

एज़ाज़ काज़मी

मकान ख़ाली है

अज़ीज़ क़ैसी

नफ़रतों की नई दीवार उठाते हुए लोग

एहतिमाम सादिक़

दीवार

मुबश्शिर अली ज़ैदी

रंग के गहरे थे लेकिन दूर से अच्छे लगे

आज़ाद हुसैन आज़ाद

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

याद

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

हिजरत

ग़ज़नफ़र

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

रश्मि सबा

मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे

महमूद शाम

नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले

हनीफ़ राही

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

आख़िर हम ने तौर पुराना छोड़ दिया

अर्श सिद्दीक़ी

दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर

बिमल कृष्ण अश्क

सुकून

हरबंस मुखिया

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

टेक लगा कर बैठा हूँ मैं जिस बूढ़ी दीवार के साथ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

पुराने रंग में अश्क-ए-ग़म ताज़ा मिलाता हूँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

अँधेरों से उलझने की कोई तदबीर करना है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ये दर-ओ-दीवार पर बे-नाम से चुप-चाप साए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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