दीवार Poetry (page 28)

चोर

राही मासूम रज़ा

हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो

राही फ़िदाई

एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है

राही फ़िदाई

एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं

इरफ़ान सत्तार

मिरे पाँव में पायल की वही झंकार ज़िंदा है

इरम ज़ेहरा

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी

इक़बाल साजिद

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई

इक़बाल साजिद

दहर के अंधे कुएँ में कस के आवाज़ा लगा

इक़बाल साजिद

दोस्तों के हू-ब-हू पैकर का अंदाज़ा लगा

इक़बाल नवेद

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

इंशा अल्लाह ख़ान

तज़ाद

इंजिला हमेश

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक

इनाम-उल-हक़ जावेद

ये मंज़र बे-दर-ओ-दीवार होता

इनाम नदीम

होते होंगे इस दुनिया में अर्श के दा'वेदार बुलंद

इनाम हनफ़ी

सोचता हूँ सदा मैं ज़मीं पर अगर कुछ कभी बाँटता

इनआम आज़मी

कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं

इनआम आज़मी

होगा बहुत शदीद तमाज़त का इंतिक़ाम

इम्तियाज़ साग़र

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा

इम्तियाज़ अहमद राही

काला

इमरान शमशाद

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

इमरान हुसैन आज़ाद

मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं

इमरान आमी

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