दीवार Poetry (page 27)

कोई ता'मीर की सूरत निकालो

रसा चुग़ताई

अब मुझे थोड़ी सी ग़फ़लत से भी डर लगता है

राणा गन्नौरी

साथ रोने न सही गीत सुनाने आते

रम्ज़ी असीम

इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे

रम्ज़ी असीम

दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती

रम्ज़ी असीम

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग

रम्ज़ अज़ीमाबादी

लो शुरूअ नफ़रत हुई

रमेश कँवल

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

ज़र्रा इंसान कभी दश्त-नगर लगता है

राम रियाज़

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

राम रियाज़

जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है

रख़शां हाशमी

मामूल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक गुल-ए-तर भी शरर से निकला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आज तो रोने को जी हो जैसे

राजेन्द्र मनचंदा बानी

जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है

राजेश रेड्डी

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

ख़्वाब आँखों को हमारी जो दिखाए आइना

राजेन्द्र कलकल

क़स्र-ए-वीराँ

राजा मेहदी अली ख़ाँ

टूटी हुई दीवार की तक़दीर बना हूँ

राज नारायण राज़

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

क्या बात थी कि जो भी सुना अन-सुना हुआ

राज नारायण राज़

क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो

राज नारायण राज़

कोई पत्थर ही किसी सम्त से आया होता

राज नारायण राज़

इस्फ़न्ज की अंधी सीढ़ियों पर

रईस फ़रोग़

किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है

रईस फ़रोग़

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

दिल की बर्बादी के आसार अभी बाक़ी हैं

राही शहाबी

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