दीवार Poetry (page 58)
खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा
अब्दुल मन्नान तरज़ी
हर आन नई शान है हर लम्हा नया है
अब्दुल मन्नान तरज़ी
कहाँ शिकवा ज़माने का पस-ए-दीवार करते हैं
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
अब्दुल हमीद अदम
होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ज़ियारत
अब्दुल अहद साज़
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात
अब्दुल अहद साज़
तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है
अब्दुल अहद साज़
ख़ूब इतना था कि दीवार पकड़ कर निकला
अब्बास ताबिश
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है
अब्बास ताबिश
ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है
अब्बास ताबिश
तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
अब्बास ताबिश
शे'र लिखने का फ़ाएदा क्या है
अब्बास ताबिश
साँस के शोर को झंकार न समझा जाए
अब्बास ताबिश
रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ
अब्बास ताबिश
मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था
अब्बास ताबिश
मह-रुख़ जो घरों से कभी बाहर निकल आए
अब्बास ताबिश
कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए
अब्बास ताबिश
इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं
अब्बास ताबिश
हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है
अब्बास ताबिश
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया
अब्बास ताबिश
बैठता उठता था मैं यारों के बीच
अब्बास ताबिश
बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है
अब्बास ताबिश
बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ
अब्बास ताबिश
ताबीर को तरसे हुए ख़्वाबों की ज़बाँ हैं
अब्बास रिज़वी
सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं
अब्बास रिज़वी
लम्हा-दर-लम्हा तिरी राह तका करती है
अब्बास क़मर
न हो जिस पे भरोसा उस से हम यारी नहीं रखते
अब्बास दाना
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