दीवार Poetry (page 30)

तार-ए-शबनम की तरह सूरत-ए-ख़स टूटती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है

इब्राहीम अश्क

ग़लत-फ़हमी की सरहद पार कर के

इब्न-ए-मुफ़्ती

सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके

इब्न-ए-इंशा

सब मुतमइन थे सुब्ह का अख़बार देख कर

हुसैन ताज रिज़वी

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है

हुमैरा राहत

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं

हीरानंद सोज़

यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ

हिमायत अली शाएर

मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कारज़ार-ए-ज़िंदगी में ऐसे लम्हे आ गए

हयात रिज़वी अमरोहवी

हर सदा से बच के वो एहसास-ए-तन्हाई में है

हयात लखनवी

सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा

हयात लखनवी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में

हातिम अली मेहर

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

हातिम अली मेहर

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

हातिम अली मेहर

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

हस्सान अहमद आवान

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