न पूछिए कि शब-ए-हिज्र हम पे क्या गुज़री
तमाम रात जले शम-ए-अंजुमन की तरह
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
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Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
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कभी न हुस्न-ओ-मोहब्बत में बन सकी 'वाहिद'
जो दश्त-ए-तमन्ना में हर वक़्त भटकता है
आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने
अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
किस शान किस वक़ार से किस बाँकपन से हम
का'बा-ओ-दैर-ओ-कलीसा का तजस्सुस क्यूँ हो
इस तरह हुस्न-ओ-मोहब्बत की करो तुम तफ़्सीर
मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ
दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
वो और हैं किनारों पे पाते हैं जो सुकूँ
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
अँधेरों में उजाले ढूँढता हूँ