सितम Poetry

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

हिज्र

अज़ीमुद्दीन अहमद

देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं

एहतिमाम सादिक़

कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

जवाँ आग

हबीब जालिब

ज़ाबता

हबीब जालिब

अंदेशा

फ़ैसल हाश्मी

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

एक है फिर भी है ख़ुदा सब का

ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

ख़ुर्शीद की बेटी कि जो धूपों में पली है

ज़ुबैर रिज़वी

कुछ ज़ुल्म ओ सितम सहने की आदत भी है हम को

ज़िया ज़मीर

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

ज़िया ज़मीर

हाँ मुझ पे सितम भी हैं बहुत वक़्त के लेकिन

ज़िया जालंधरी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

भूलना ख़ुद को तो आसाँ है भुला बैठा हूँ

ज़ेहरा निगाह

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए

ज़ेहरा निगाह

हर आन सितम ढाए है क्या जानिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

गर्दिश-ए-मीना-ओ-जाम देखिए कब तक रहे

ज़ेहरा निगाह

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

नक़्श-ए-तस्वीर न वो संग का पैकर कोई

ज़ेब ग़ौरी

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