सितम Poetry (page 3)

आप ही अपने ज़रा जौर-ओ-सितम को देखें

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते

वसीम मीनाई

फ़लक बेदाद करता है जो जौर ईजाद करते हैं

वसीम ख़ैराबादी

कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा

वसीम ख़ैराबादी

कहाँ मिलेगी भला इस सितमगरी की मिसाल

वक़ार मानवी

गई है शाम अभी ज़ख़्म ज़ख़्म कर के मुझे

वक़ार मानवी

सुर्ख़ दामन में शफ़क़ के कोई तारा तो नहीं

वामिक़ जौनपुरी

आप की नज़रों में शायद इस लिए अच्छा हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

शब न ये सर्दी से यख़-बस्ता ज़मीं हर तर्फ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस

वलीउल्लाह मुहिब

अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया

वली उज़लत

जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है

वली मोहम्मद वली

जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ

वली मोहम्मद वली

हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है

वाली आसी

ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है

वाजिद अली शाह अख़्तर

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

फ़रेब-ए-राह-ए-मोहब्बत का आसरा भी नहीं

वहीदुल हसन हाश्मी

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