मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
मिलना तिरा आसाँ है तलबगार बहुत हैं
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शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर