मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
उन को अंदेशा कि ये भी कोई फ़रियाद न हो
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क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
और इशरत की तमन्ना क्या करें
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने