क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
ऐब क्या है अगर हुनर न हुआ
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न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ