छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
कि जानता है ज़माना मिरे सुख़न से मुझे
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ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने