ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
क्या करूँ आह अगर तेरी तमन्ना न करूँ
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नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
'वहशत' सुख़न ओ लुत्फ़-ए-सुख़न और ही शय है
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है