तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
तेरे ही तो जाँ-निसार हैं हम
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दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
जो गिरफ़्तार तुम्हारा है वही है आज़ाद
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
क्यूँ ग़म्ज़ा-ए-जाँ-सिताँ को ख़ंजर न कहें
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी