आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है पूरी हो तमन्ना मुश्किल है
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क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने