यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
गया ज़ेर-ए-ज़मीं जो कोई ज़ेर-ए-आसमाँ आया
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मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
और इशरत की तमन्ना क्या करें
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे