दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
शोख़ी ने कभी कभी हया ने
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे