नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
जिसे तुम ने किया ख़ामोश उस से क्या सदा निकले
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
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दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
मेरा मक़्सद कि वो ख़ुश हों मिरी ख़ामोशी से
और इशरत की तमन्ना क्या करें