किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
मैं अगर ख़िदमत-ए-उर्दू-ए-मुअ'ल्ला न करूँ
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तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है
दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें