कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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Wasi Shah
Parveen Shakir
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ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
बढ़ चली है बहुत हया तेरी
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ
मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न