ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
उस से मिलने की तमन्ना देखिए
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तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया