बेनियाज़ी Poetry

जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ

ज़ेबा

दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा

ज़ेब ग़ौरी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है

वली मोहम्मद वली

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ये क़दम क़दम कशाकश दिल बे-क़रार क्या है

वारिस किरमानी

गुज़ारिश

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

इश्क़ में हर तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं सुर्ख़ आँसू बहाए तो मैं क्या करूँ

तुर्फ़ा क़ुरैशी

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

किसी की याद में शमएँ जलाना भूल जाता है

सुहैल सानी

हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है

ज़ौक़

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

कट न पाए ये फ़ासले भी अगर

शकील जाज़िब

ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक

शकील बदायुनी

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे

शकील बदायुनी

वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा

सलीम कौसर

मुबारकबाद

साइमा असमा

मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल

रुख़साना नूर

जिस को देखो एहतिसाब-ए-ज़ीस्त से ग़ाफ़िल है आज

रशीद शाहजहाँपुरी

मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ

राही फ़िदाई

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बला नई कोई पालूँ अगर इजाज़त हो

इफ़्फ़त अब्बास

सदमे जो कुछ हों दिल पे सहिए

हफ़ीज़ जौनपुरी

रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत

ग़ालिब

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

फ़िगार उन्नावी

ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई

फ़ारूक़ बाँसपारी

न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से

फ़रीद जावेद

न बुत-कदे में न का'बे में सर झुकाने से

फ़रीद जावेद

मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है

द्वारका दास शोला

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