दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से
ठेस आख़िर लग गई शीशे में बाल आ ही गया
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'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
हुए हैं गुम जिस की जुस्तुजू में उसी की हम जुस्तुजू करेंगे
नहीं कि इश्क़ नहीं है गुल ओ समन से मुझे
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
और इशरत की तमन्ना क्या करें