ऐ मिशअल-ए-उम्मीद ये एहसान कम नहीं
तारीक शब को तू ने दरख़्शाँ बना दिया
Javed Akhtar
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तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता