तेरा मरना इश्क़ का आग़ाज़ था
मौत पर होगा मिरे अंजाम-ए-इश्क़
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तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें
कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
क़द्रदानी की कैफ़ियत मालूम
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
हम ने आलम से बेवफ़ाई की