नीचे सर्पिल Poetry

ज़ाबता

हबीब जालिब

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ये तो हाथों की लकीरों में था गिर्दाब कोई

ज़िया ज़मीर

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

वो इक झलक दिखा के जिधर से निकल गया

ज़हीर काश्मीरी

एक इक पल तिरा नायाब भी हो सकता है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

पता चला कोई गिर्दाब से गुज़रते हुए

ज़फ़र इक़बाल

जादा-ए-ज़ीस्त पे बरपा है तमाशा कैसा

यज़दानी जालंधरी

उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है

याक़ूब उस्मानी

तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची

वज़ीर अली सबा लखनवी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

सकता

वज़ीर आग़ा

शमएँ रौशन हैं आबगीनों में

वामिक़ जौनपुरी

न शोख़ियों से करे हैं वो चश्म-ए-गुल-गूँ रक़्स

वली उज़लत

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे

वली मोहम्मद वली

ज़ेर-ए-पा अब न ज़मीं है न फ़लक है सर पर

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी

तौसीफ़ तबस्सुम

सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है

तारिक़ नईम

ख़ुलासा ये मिरे हालात का है

सय्यद ज़मीर जाफ़री

आँखों को चमक चेहरे को इक आब तो दीजे

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

तसलसुल पाएमाली का मिलेगा

सय्यद अमीन अशरफ़

ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं

सुल्तान अख़्तर

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

सुहैल अख़्तर

समुंदरों में सराब और ख़ुश्कियों में गिर्दाब देखता है

सिराज अजमली

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

अब यही बेहतर है नक़्श-ए-आब होने दे मुझे

सिद्दीक़ मुजीबी

तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे

शमशाद शाद

डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ

शमीम फ़ारूक़ी

उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते

शहरयार

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