नीचे सर्पिल Poetry (page 4)

बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद-कुशी के पुल पर

फ़हीम शनास काज़मी

आ गया ईसार मेरे हल्क़ा-ए-अहबाब में

एजाज़ अासिफ़

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

ख़्वाब जीने नहीं देंगे तुझे ख़्वाबों से निकल

भारत भूषण पन्त

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

नहीं ये जल्वा-हा-ए-राज़-ए-इरफ़ाँ देखने वाले

बासित भोपाली

जाने क्या देखा था मैं ने ख़्वाब में

बशर नवाज़

रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है

बख़्श लाइलपूरी

शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही

ज़फ़र

परिंदे झील पर इक रब्त-ए-रूहानी में आए हैं

अज़ीज़ नबील

ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है

अज़ीम हैदर सय्यद

हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते

अतहर राज़

जीना है तो जीने का सहारा भी तो होगा

अतहर राज़

वो सुकून-ए-जिस्म-ओ-जाँ गिर्दाब-ए-जाँ होने को है

अताउल हक़ क़ासमी

कर्गस को सुरख़ाब बनाना चाहोगे

असरा रिज़वी

मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ

असलम महमूद

किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया

असलम महमूद

हमारी जीत हुई है कि दोनों हारे हैं

असलम कोलसरी

जो अक्स-ए-यार तह-ए-आब देख सकते हैं

असअ'द बदायुनी

अजब दिन थे कि इन आँखों में कोई ख़्वाब रहता था

असअ'द बदायुनी

अगर तक़दीर तेरी बाइस-ए-आज़ार हो जाए

अर्श मलसियानी

अंधे अदम वजूद के गिर्दाब से निकल

आरिफ़ शफ़ीक़

अंधे अदम वजूद के गिर्दाब से निकल

आरिफ़ शफ़ीक़

मेरी क़िस्मत कि वो अब हैं मिरे ग़म-ख़्वारों में

अनवर मसूद

पलकों तक आ के अश्क का सैलाब रह गया

अंजुम ख़लीक़

रू-ए-गुल चेहरा-ए-महताब नहीं देखते हैं

अनीस अशफ़ाक़

पलकों की दहलीज़ पे चमका एक सितारा था

अमजद इस्लाम अमजद

दश्त-ए-बे-आब की तरह गुज़री

अमजद इस्लाम अमजद

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