नीचे सर्पिल Poetry (page 3)

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश

रियाज़ लतीफ़

जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए

रियाज़ लतीफ़

बुढ़ापा

रज़ी रज़ीउद्दीन

ख़मोश झील में गिर्दाब देख लेते हैं

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

रात क्या सोच रहा था मैं भी

रसा चुग़ताई

निगाह तूर पे है और जमाल सीने में

रम्ज़ अज़ीमाबादी

इस डर से इशारा न किया होंट न खोले

राम रियाज़

अपने हिस्से में ही आने थे ख़सारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया

इमदाद अली बहर

ज़ब्त ने भींचा तो आ'साब की चीख़ें निकलीं

इकराम आज़म

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

रात ये कौन मिरे ख़्वाब में आया हुआ था

हसन अब्बासी

जुनूँ का मिरे इम्तिहाँ हो रहा है

हैरत गोंडवी

मौत माँगूँ तो रहे आरज़ू-ए-ख़्वाब मुझे

हैदर अली आतिश

बे-महल है गुफ़्तुगू हैं बे-असर अशआर अभी

हबीब तनवीर

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

गुलज़ार

ताबीरों से बंद क़बा-ए-ख़्वाब खुले

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

फ़रहत एहसास

है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है

फ़रहत एहसास

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