किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश
ख़ुद अपनी मर्ज़ी से इस जहाँ की रगों में गिर्दाब हम हुए हैं
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
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ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में
हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए
एक रोते हुए आदमी को देख कर
किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था
दवाम के दयार में
जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए
बनारस
चमगादड़
ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है
कभी तो मंज़रों के इस तिलिस्म से उभर सकूँ
ख़ला-नवर्दी
सवेरा