यहीं पर ख़त्म होनी चाहिए थी एक दुनिया
यहीं से बात का आग़ाज़ होना चाहिए था
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कभी तो मंज़रों के इस तिलिस्म से उभर सकूँ
मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई
नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब
ख़ुद अपना इंतिज़ार भी
माज़रत
सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है
हिजरत
रेत है इज़हार के पानी के पार
गाए
उस पार
बस लहू की बूँद थी एहसास में
तमाम ख़लियों में अक्सर सुनाई देता है