बस लहू की बूँद थी एहसास में
फिर उगाया दश्त ने इक सर नया
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ना-मुकम्मल तआरुफ़
बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम
ख़ला-नवर्दी
साबुन
नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब
ख़ुद अपना इंतिज़ार भी
ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है
मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई
ज़मीन फैल गई है हमारी रूह तलक
वीरान ख़्वाहिश
जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए
ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में