बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम
पहले वो साँस की सरहद पे तो आ कर देखे
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वीरान ख़्वाहिश
हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए
जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए
गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
हिजरत
उस पार
यहीं पर ख़त्म होनी चाहिए थी एक दुनिया
बस लहू की बूँद थी एहसास में
हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए
बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता
आमद
ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में